काशी विश्वनाथ ज्यातिर्लिंग का इतिहास


काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग -

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग

    विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह उत्तर प्रदेश के वाराणसी जनपद के काशी नामक स्थान पर स्थित है। काशी सभी धर्म स्थलों में सबसे अधिक महत्व रखती है। इस स्थान की मान्यता है, कि प्रलय आने पर भी यह स्थान बना रहेगा। इसकी रक्षा के लिए भगवान शिव इस स्थान को अपने त्रिशूल पर धारण करेंगे। मंदिर के ऊपर के सोने के छत्र को ले कर यह मान्यता है कि अगर उसे देख कर कोई मुराद मांगी जाती है तो वह अवश्य ही पूरी होती है। यहां शिव लिंग काले पत्थर का बना हुआ है। इसके अलावा दक्षिण की तरफ़ तीन लिंग हैं, जिन्हें मिला कर नीलकंठेश्वर कहा जाता है।

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का निर्माण-

काशी विश्वनाथ मंदिर

पुराणों, उपनिषद से लेकर बहुत सी प्राचीन किताबों में इस शहर का ज़िक्र मिलता है। काशी शब्द की उत्पत्ति कश से हुई है, जिसका अर्थ होता है चमकना। मान्यता है कि अनादि काल से भगवान शिव यहां विराजमान हैं। धर्म ग्रंथों में महाभारत काल से भी पहले का बर्णन मिलता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने एक भक्त को सपने में दर्शन दिए और कहा था कि गंगा नदी में स्नान करने के बाद उसे दो शिवलिंग मिलेंगे, वह जब दोनों शिवलिंगों को मिलाकर स्थापित करेगा तो शिव और शक्ति के दिव्य शिवलिंग की स्थापना होगी। तभी से भगवान शिव यहां मां भगवती के संग विराजमान हैं। इतिहास में काशी विश्वनाथ मंदिर के निर्माण का समय 1490 बताया जाता है।

काशी विश्वनाथ मंदिर1

काशी में बहुत से शासकों ने शासन किया, जिनमें से कई बहुत नामी रहे। इस शहर पर बौद्धों ने भी काफ़ी वर्षों तक शासन किया है। गंगा किनारे बसा यह शहर कई बार तबाही और निर्माण का साक्षी बना है, जिसका असर काशीनाथ मंदिर पर भी पड़ा। इस मंदिर को बहुत बार तोड़ा और बनाया जा चुका है। मुगल शासन के दौरान मुगल बादशाह औरंगजेब ने मंदिर को नष्ट करके मस्जिद का निर्माण करने की कोशिश की थी, जिसके सबूत आज भी विद्यामान हैं। मंदिर की पश्चिमी दीवार पर मस्जिद के लिए की गई नक्काशी को साफ देखा जा सकता है ।

काशी विश्वनाथ मंदिर की बर्तमान संरचना जो आज यहां दिखाई देती है को रानी अहिल्या बाई होलकर ने 18वीं शताव्दी में बनबाया था। रानी अहिल्या बाई भगवान शिव की बहुत भक्त थी । उन्होंने सवप्न से प्रेरित होकर मंदिर का निर्माण 1777 में करबाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह द्वारा 1853 में शुद्ध सोने का कलश (शिखर) बनवाया गया ।

मान्यता-

काशी विश्वनाथ मंदिर2

शिव पुराण के अनुसार रोग ग्रस्त स्त्री या पुरुष, युवा हो या प्रौढ़, मोक्ष की प्राप्ति के लिए यहां आते हैं। ऐसा मानते हैं कि यहां पर आने वाला हर श्रद्धालु भगवान विश्वनाथ को अपनी इच्छा समर्पित करता है। काशी क्षेत्र में मरने वाले किसी भी प्राणी को निश्चित ही मुक्ति प्राप्त होती है। कहते हैं जब कोई यहां मर रहा होता है उस समय भगवान श्री विश्वनाथ उसके कानों में तारक मंत्र का उपदेश देते हैं जिससे वह जन्म-मरण के चक्कर से अर्थात इस संसार से मुक्त हो जाता है ।

जय बाबा विश्वनाथ जी

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