कन्या कुमारी मंदिर के रहस्य , कन्याकुमारी मंदिर का इतिहास

 

     तमिलनाडु के कन्या कुमारी शहर का नाम देवी कन्या कुमारी के नाम पर पड़ा है। यह जगह चोला  ,चेरा , पांड्या और नायका राज्यों का  घर  रहा है।  कला और धर्म - संस्कृति का पुराना गढ़ है। कन्या कुमारी में तीन समुद्रों बंगाल की  खाड़ी , अरब सागर और हिन्दमहासागर का मिलन होता है। इस स्थान को त्रिवेणी संगम भी कहा जाता।
  कन्या कुमारी का यह मंदिर 3000 साल से ज्यादा पुराना है। इस मंदिर को भगवान परशुराम ने स्थापित किया था। कन्या कुमारी अपने सूर्य उदय के लिए बहुत मशहूर है। हर रोज होटलों  की छत पर पर्यटकों की भीड़ उगते हुए सूरज को देखने के लिए जमा हो जाती है।
  कन्या कुमारी मंदिर की कहानी -
  ऐसी मान्यता है कि कुमारी नामक कन्या आदिशक्ति के अंश से उतन्न हुई थी। इनका जन्म वाणासुर नामक असुर का वध करने के लिए हुआ था। असुर को कुंवारी कन्या के हाथों मरने का वरदान प्राप्त था।
  ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने घोर तपस्या की थी। भगवान शिव ने विवाह के लिए वचन भी दिया था।  एक दिन बारात लेकर शिवजी निकल भी पड़े।
 लेकिन लेकिन नारद ने सुचिन्द्रम नामक स्थान पर ऐसा  उलझाया कि विवाह का महूर्त निकल गया। ऐसा मानना है कि देवी का विवाह हो जाने पर असुर वाणासुर का वध नहीं हो पाता। इसलिए देवताओं के कहने पर नारद जी ने शिव जी और कुमारी नामक कन्या के विवाह में बाधक बनने का काम किया। देवी के कुंवारी रह जाने के कारण इस जगह का नाम
कन्या कुमारी पड़ा।
  जहां पर विवाह होना था वह वर्तमान में कन्या कुमारी तीर्थ कहलाता है। देवी का विवाह नहीं होने पर विवाह के लिए एकत्र किये हुए अन्न को बिना पकाए छोड़ दिया गया और समुद्र में फैंक दिया गया। बाद में यह सब पत्थर में बदल गया।
 कहा जाता  है कि इसलिए ही कन्याकुमारी में समुद्र के किनारे रेत में दाल और चावल के रंगों बाले कंकर पत्थर बहुत मिलते हैं। यह कंकर पत्थर आकार में भी दाल या चावल के बराबर ही होते हैं।

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