केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का इतिहास

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग- 

केदारनाथ मंदिर

  केदारनाथ स्थित ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में आता है। यह उत्तराखंड राज्य के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है। बाबा केदारनाथ का यह मंदिर समुद्र तल से 3584 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। केदारनाथ का वर्णन स्कन्द पुराण एवं शिव पुराण में भी मिलता है। यह तीर्थ भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है।

  अगर वैज्ञानिकों की मानें तो केदारनाथ का मंदिर 400 साल तक बर्फ में दबा रहा था, लेकिन फिर भी वह सुरक्षित बचा रहा। 13वीं से 17वीं शताब्दी तक यानी 400 साल तक एक छोटा हिमयुग आया था जिसमें यह मंदिर दब गया था।

  वैज्ञानिकों के मुताबिक केदारनाथ मंदिर 400 साल तक बर्फ में दबा रहा फिर भी इस मंदिर को कुछ नहीं हुआ, इसलिए वैज्ञानिक इस बात से हैरान नहीं है कि ताजा जल प्रलय में यह मंदिर बच गया।

 मंदिर का निर्मांण- 

केदारनाथ मंदिर1


  मंदिर का निर्माण विक्रम संवत् 1076 से 1099 तक राज करने वाले मालवा के राजा भोज ने इस मंदिर को बनवाया था, लेकिन कुछ लोगों के अनुसार यह मंदिर 8वीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने बनवाया था।

  यह उत्तराखण्ड का सबसे विशाल शिव मंदिर है जो कटवां पत्थरों के विशाल शिलाखण्डों को जोड़कर बनाया गया है। मंदिर लगभग 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना है, इसकी छत चार विशाल सतंभों पर बनी है। यह विशाल छत एक ही पत्थर की बनी है। यह आश्चर्य ही है कि इतने भारी पत्थरों और खासकर विशालकाय छत को इतनी ऊंचाई पर लाकर कैसे मंदिर की शक्ल दी गई होगी। पत्थरों को एक दूसरे से जोड़ने के लिए इंटरलॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। जिसकी मजबूती ही मंदिर को हजारों बर्षों से नदी के बीचोंबीच खड़ा रखने में कामयाव हुई है।

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की कहानी- 

केदारनाथ मंदिर2

  केदारनाथ के बारे में मान्यता है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांण्डव अपने गुरूजनों और सगे सबंधियों की हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे । इसका उपाय पूछने के लिए वे भगवान श्री कृष्ण की शरण में गए । श्रीकृष्ण ने उन्हैं बताया कि भगवान शिव ही उनको इस पाप से मुक्ति प्रदान कर सकते हैं इसलिए उन्हैं भगवान शिव जी शरण में जाना चाहिए।

  भगवान श्री कृष्ण के कहने पर पांण्डव शिव जी को मनाने चल पड़े। पांण्डवों द्वारा अपने गुरूओं एवं सगे-संबंधियों का वध किये जाने से भगवान शिव जी पांण्डवों से नाराज हो गये थे । गुप्त काशी में पांण्डवों को देखकर भगवान शिव वहां से विलीन हो गये और उस स्थान पर पहुंच गये जहां पर वर्तमान में केदारनाथ स्थित है।

  लेकिन पांण्डव भगवान शिव को हर हाल में मनाना चाहते थे। शिव जी का पीछा करते हुए पांण्डव केदारनाथ पहुंच गये। इस स्थान पर पांण्डवों को आया हुए देखकर भगवान शिव ने एक बैल का रूप धारण किया और इस क्षेत्र में चर रहे बैलों के झुंण्ड में शामिल हो गये। पांण्डवों ने बैलों के झुंण्ड में भी शिव जी को पहचान लिया तो शिव जी बैल के रूप में ही धरती में समाने लगे। भगवान शिव को बैल के रूप में धरती में समाता देख भीम ने कमर से कसकर पकड़ लिया।

भीम शिला केदारनाथ मंदिर

  पांण्डवों की सच्ची श्रद्धा को देख भगवान शिव प्रकट हुए और पांण्डवों को पापों से मुक्त कर दिया। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव जी जब बैल के रूप में धरती में समा रहे थे तो उनका सिर काठमांडू स्थित पशुतिनाथ में प्रकट हुआ। अब बहां पशुपतिनाथ का भव्य मंदिर है। इसलिए केदारनाथ और पशुपतिनाथ को मिलाकर एक ज्योर्तिलिंग भी कहा जाता है। केदरनाथ में बैल के पीठ रूप में शिवलिंग की पूजा होती है जबकि पशुपतिनाथ में बैल के सिर के रूप में शिवलिंग को पूजा जाता है।
        जय बाबा केदारनाथ। 

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