बाबा वालकनाथ दयोटसिद्ध का इतिहास, history of Baba Balak nath


बाबा बालकनाथ जी


बाबा बालक नाथ

  बाबा वालक नाथ जी का यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के छकमोह गाँव की पहाडी के शिखर पर स्थित है। मंदिर में पहाडी के बीच एक प्राकॄतिक गुफा है ।ऐसी मान्यता है, कि यही स्थान बाबाजी का आवास स्थान था।

  बाबा जी को भारतीय राज्य पंजाब और हिमाचल प्रदेश में बहुत श्रद्धा से पूजा जाता है । इनके पूजनीय स्थल को दयोटसिद्ध के नाम से जाना जाता है। मंदिर में बाबाजी की एक मूर्ति स्थित है, भक्तजन बाबाजी को प्रसाद के रूप में रोट चढाते हैं । रोट को आटे, चीनी, गुड और घी को मिलाकर बनाया जाता है। यहाँ पर बाबाजी को बकरा भी चढ़ाया जाता है लेकिन यहाँ पर बकरे की बलि नहीं चढाई जाती बल्कि उनका पालन पोषण करा जाता है।

  बाबाजी की गुफा में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबन्ध है, लेकिन उनके दर्शन के लिए गुफा के बिलकुल सामने एक ऊँचा चबूतरा बनाया गया है, जहाँ से महिलाएँ उनके दूर से दर्शन कर सकती हैं। मंदिर से करीब छहः कि.मी. आगे एक स्थान शाहतलाई स्थित है, ऐसी मान्यता है, कि इसी जगह बाबाजी ध्यानयोग किया करते थे।

बाबा बालकनाथ जी की कहानी -

  ऐसी मान्यता है, कि बाबाजी का जन्म सभी युगों में हुआ और हर एक युग में उनको अलग-अलग नाम से जाना गया जैसे सत युग में स्कन्द , त्रेता युग में कौल और द्वापर युग में महाकौल के नाम से जाना गया अपने हर अवतार में उन्होंने गरीबों एवं निस्सहायों लोगों की सहायता करके उनके दुख दर्द और तकलीफों को खत्म किया। हर एक जन्म में यह शिव के बडे भक्त कहलाए। द्वापर युग में बाबाजी

  जिस समय कैलाश पर्वत जा रहे थे, जाते हुए रास्ते में उनकी मुलाकात एक वृद्ध स्त्री से हुई । उसने बाबा जी से गन्तव्य में जाने का कारण पूछा तो बाबाजी ने वृद्ध स्त्री को बताया कि वह शिव जी के भक्त हैं और वह भगवान शिव से मिलने जा रहे हैं तो उसने उन्हें मानसरोवर नदी के किनारे तपस्या करने की सलाह दी और माता पार्वती जो कि मानसरोवर नदी में अक्सर स्नान के लिए आया करती थीं से उन तक पहुँचने का उपाय पूछने के लिए कहा। बाबाजी ने बिलकुल वैसा ही किया और अपने उद्देश्य, भगवान शिव से मिलने में सफल हुए। बालयोगी बाबा जी को देखकर शिवजी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने बाबाजी को कलयुग तक भक्तों के बीच सिद्ध प्रतीक के तौर से पूजे जाने का आशिर्वाद प्रदान किया और चिर आयु तक उनकी छवि को बालक की छवि के तौर पर बने रहने का भी आशिर्वाद दिया।

  कलयुग में बाबा बालकनाथ जी ने गुजरात, काठियाबाद में देव के नाम से जन्म लिया। उनकी माता का नाम लक्ष्मी और पिता का नाम वैष्णो वैश था, बचपन से ही बाबाजी आध्यात्म में लीन रहते थे। यह देखकर उनके माता पिता ने उनका विवाह करने का निश्चय किया परन्तु बाबाजी उनके प्रस्ताव को ठुकरा करके और घर परिवार को छोड़ कर परम सिद्धी की राह पर निकल पड़े। एक दिन जूनागढ़ की गिरनार पहाडी में उनका सामना स्वामी दत्तात्रेय से हुआ और यहीं पर बाबाजी ने स्वामी दत्तात्रेय से सिद्ध की बुनियादी शिक्षा ग्रहण की और सिद्ध बने। तभी से उन्हें बाबा बालकनाथ कहा जाने लगा।

बाबा बालक नाथ शाहतलाई

  बाबाजी के दो पृथ्क साक्ष्य अभी भी उप्लब्ध हैं जो कि उनकी उपस्तिथि के अभी भी प्रमाण हैं जिन में से एक है गरुन का पेड़ । यह पेड़ अभी भी शाहतलाई में मौजूद है, इसी पेड़ के नीचे बाबाजी तपस्या किया करते थे। दूसरा प्रमाण एक पुराना पोलिस स्टेशन है, जो कि बड़सर में स्थित है जहाँ पर उन गायों को रखा गया था जिन्होंने सभी खेतों की फसल खराब कर दी थी, जिसकी कहानी इस तरह से है कि, एक महिला जिसका नाम रत्नो था, ने बाबाजी को अपनी गायों की रखवाली के लिए रखा था । जिसके बदले में रत्नो बाबाजी को रोटी और लस्सी खाने को देती थी । ऐसी मान्यता है कि बाबाजी अपनी तपस्या में इतने लीन रहते थे कि रत्नो द्वारा दी गयी रोटी और लस्सी खाना याद ही नहीं रहता था। एक बार जब रत्नो बाबाजी की आलोचना कर रही थी कि वह गायों का ठीक से ख्याल नहीं रखते जबकि रत्नो बाबाजी के खाने पीने का खूब ध्यान रखतीं हैं। रत्नो का इतना ही कहना था कि बाबाजी ने पेड़ के तने से रोटी और ज़मीन से लस्सी को उत्त्पन्न कर दिया। बाबाजी ने सारी उम्र ब्रह्मचर्य का पालन किया और इसी बात को ध्यान में रखते हुए उनकी महिला भक्त गर्भगुफा में प्रवेश नहीं करती जो कि प्राकृतिक गुफा में स्थित है जहाँ पर बाबाजी तपस्या करते हुए अंतर्ध्यान हो गए थे।

जय बाबा वालक नाथ

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