रामेश्वरम जयोतिर्लिंग का इतिहास


रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग- 

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग

 रामेश्वरम का यह ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के साथ-साथ हिंदुओं के चार धामों में से एक भी है। इस ज्योतिर्लिंग के विषय में यह मान्यता है कि इसकी स्थापना स्वयं भगवान श्रीराम ने की थी। भगवान राम के द्वारा स्थापित होने के कारण ही इस ज्योतिर्लिंग का नाम भगवान श्री राम के नाम पर रामेश्वरम पड़ा।
  रामेश्वरम का यह ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम जिले के मन्नार की खाड़ी में स्थित है। यह स्थान हिंदमहासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ एक सुंदर शंख आकार का द्धीप है।
  बताया जाता है, कि बहुत पहले मन्नार द्वीप तक लोग पैदल चलकर भी जाते थे, लेकिन 1480 ई में एक चक्रवाती तूफान ने इस रास्ते को तोड़ दिया। जिस स्थान पर यह टापु मुख्य भूमि से जुड़ा हुआ था, वहां इस समय ढाई मील चौड़ी एक खाड़ी है। शुरू में इस खाड़ी को नावों से पार किया जाता था। बाद में आज से लगभग चार सौ वर्ष पहले कृष्णप्पनायकन नाम के एक राजा ने उस स्थान पर पत्थर का बहुत बड़ा पुल बनवाया।
  अंग्रेजो के आने के बाद उस पुल की जगह पर एक जर्मन इंजीनियर की मदद से रेल का सुंदर पुल बनबाया गया। उस समय तक पुराना पत्थर का पुल लहरों की टक्करों से टूट चुका था। इस समय यही पुल रामेश्वरम् को शेष भारत से रेल सेवा द्वारा जोड़ता है।

मान्यता- 

 ऐसा माना जाता है कि रामेश्वरम मंदिर में स्थापित ज्योतिर्लिंग का पवित्र गंगा जल से जलाभिषेक करने का बहुत अधिक महत्व है। मान्यता तो यह भी है कि रामेश्वरम में भगवान शिव की विधिवत पूजा करने पर ब्रह्महत्या जैसे दोष से भी मुक्ति मिल जाती है। रामेश्वरम को दक्षिण भारत का काशी माना जाता है क्योंकि यह स्थान भी भगवान शिव और प्रभु श्री राम की कृपा से मोक्षदायी है।

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग का इतिहास- 

श्री रामेश्वरम मंदिर

  पौराणिक ग्रंथों में रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के इतिहास के बारे में रामायण काल से जुड़ी दो अलग-अलग कहानियां प्रचलित हैं । एक जब भगवान श्री राम ने लंका पर चढ़ाई की तो विजय प्राप्त करने के लिये उन्होंनें समुद्र के किनारे शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की पूजा की थी। इससे प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने श्री राम को विजयी होने का आशीर्वाद दिया था। आशीर्वाद मिलने के साथ ही श्री राम ने अनुरोध किया कि वे जनकल्याण के लिये सदैव इस ज्योतिर्लिंग रूप में यहां निवास करें। उनकी इस प्रार्थना को भगवान शंकर ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
  इसके अलावा ज्योतिर्लिंग की स्थापना की एक दूसरी कहानी भी है। इसके अनुसार जब भगवान श्री राम लंका पर विजय प्राप्त कर लौट रहे थे तो उन्होंनें गंधमादन पर्वत पर विश्राम किया वहां पर ऋषि मुनियों ने श्री राम को बताया कि उन पर ब्रह्महत्या (रावण और उसके कुल जो कि ऋषि पुलस्त्य के कुल से थे की हत्या) का दोष है जो शिवलिंग की पूजा करने से ही दूर हो सकता है।

रामेश्वरम मंदिर

  इसके लिये भगवान श्री राम ने हनुमान से शिवलिंग लेकर आने की बात कही। हनुमान तुरंत कैलाश पर्वत पर पहुंचे लेकिन वहां उन्हें भगवान शिव नजर नहीं आये। अब हनुमान भगवान शिव के लिये तप करने लगे। अंतत: भगवान शिव ने हनुमान की पुकार को सुना और हनुमान ने भगवान शिव से आशीर्वाद सहित शिवलिंग प्राप्त किया । लेकिन तब तक बहुत समय बीत चुका था। ऋषि-मनियों ने भगवान श्री राम से शिवलिंग की स्थापना का मुहूर्त निकल जाने की चिंता जाहिर की। मुहूर्त निकल जाने के भय से माता सीता ने बालु (रेत) से ही विधिवत रूप से शिवलिंग का निर्माण कर श्री राम को सौंप दिया जिसे उन्होंनें मुहूर्त के समय स्थापित कर दिया। जब हनुमान वहां पहुंचे तो देखा कि शिवलिंग तो पहले ही स्थापित हो चुका है इससे उन्हें बहुत बुरा लगा। भगवान श्री राम ने भक्त हनुमान की भावनाओं को समझते हुए उन्हैं समझाया लेकिन वे संतुष्ट नहीं हुए। तब श्री राम ने कहा कि अगर तुम स्थापित शिवलिंग को यहां से हटा दो तो मैं इस शिवलिंग की स्थापना इस स्थान पर कर दूंगा । लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी हनुमान ऐसा न कर सके और अंतत: मूर्छित होकर गंधमादन पर्वत पर जा गिरे होश में आने पर उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ तो श्री राम ने हनुमान द्वारा लाये शिवलिंग को भी नजदीक ही स्थापित किया और उसका नाम हनुमदीश्वर रखा।

रामसेतु के बारे में मान्यता– 

राम सेतू

  कहा जाता है कि रामेश्वरम मंदिर के पास ही सागर में लंका पर चढ़ाई करने से पहले भगवान राम ने वानर सेना की मदद से राम सेतु का निर्माण किया था। जिस पर चलकर भगवान श्री राम ने वानर सेना साथ लंका पर चढाई की थी। लेकिन लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद जब विभीषण को सिंहासन सौंपा गया तो विभिषण के अनुरोध पर धनुषकोटि नामक स्थान पर इस सेतु को तोड़ दिया गया। आज भी लगभग 48 किलोमीटर लंबे इस सेतु के अवशेष देखने को मिलते हैं।

मंदिर के अंदर चमत्कारिक कूंए- 

 मंदिर के अंदर ही 24 चमत्कारिक कुएं हैं जिन्हें तीर्थ भी कहा जाता है। इनके बारे में मान्यता है कि इन्हें प्रभु श्री राम ने अपने अमोघ बाण से बनाकर उनमें तीर्थस्थलों से पवित्र जल मंगवाया था। यही कारण है कि इन कुओं का जल मीठा है। कुछ कुएं मंदिर के बाहर भी हैं लेकिन उनका जल खारा है। इन चौबीस कुओं के नाम भी देश भर के प्रसिद्ध तीर्थों व देवी देवताओं के नाम पर रखे गए हैं।

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