मेंहदीपुर बालाजी मंदिर के चमत्कार , मेंहदीपुर बालाजी मंदिर का इतिहास

   बालाजी के नाम से भागते हैं भूत प्रेत - 



आइए जानते हैं भारत के चमत्कारिक मंदिर मेंहदीपुर बालाजी के बारे में -
 
Balaji mandir

  आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि बालाजी मंदिर को भूत प्रेत या बुरी आत्माओं से किसी शरीर को छुड़ाने के लिए जाना जाता है। बालाजी का यह मंदिर राजस्थान के दौसा जिले के मेंहदीपुर में स्थित है। यह मंदिर हनुमान जी को समर्पित है। माना जाता है कि कई सालों पहले हनुमान जी और प्रेतराज अरावली पर्वत पर प्रकट हुए थे।
  कहा जाता है कि हर तरह के उपाय कराने के बाद जब लोग हर जाते हैं तो वह मेंहदीपुर बालाजी की शरण में आते हैं। यह भी कहा जाता है कि जिसने भी यहां आकर हाजरी लगाई वह कभी खाली हाथ नहीं जाता।

  मंदिर में वजरंग वली बाल रूप में मूर्ति रूप में विराजमान हैं। इस मूर्ति के बाईं ओर एक छोटा छिद्र है जिससे पवित्र जल धारा बहती है। इस जल को भक्तजन चरणामृत के रूप में अपने साथ ले जाते हैं ।

          बालाजी के साथ हैं कोतवाल कप्तान भैरव और प्रेतराज सरकार -


मंदिर में बालाजी के साथ कोतवाल कप्तान भैरव और प्रेतराज सरकार की मूर्तियां भी हैं। मंदिर में ऊपरी वाधा से ग्रसित लोग अजीव गरीव हरकत करते नजर आते हैं। मंदिर में पंडित इन रोगियों का उपचार करते हैं।

Balaji mandir ka najara

शनिवार और मंगलवार को यहां आने वाले भक्तों की संख्या लाखों में पहुंच जाती है। कई गंभीर रोगयों को तो जंजीरों  से बांध कर लाया जाता है। ऐसे लोग यहां से विना किसी दवा और तंत्र मन्त्र के ठीक होकर जाते हैं।
  अन्य मंदिरों की तरह यहां प्रसाद नहीं चढ़ाया जाता हलांकि मंदिर में हाजिरी लगाने के नाम पर यहां मिलने बाले  छोटे छोटे लड्डू जरूर चढ़ाये जाते हैं।यहां कोतवाल कप्तान भैरव  को उड़द और प्रेतराज सरकार को चावल भी चढ़ाए जाते हैं लेकिन ज्यादातर लोग लड्डू ही चढ़ाते हैं। इस प्रसाद में से दो लड्डू रोगी को खिलाये जाते हैं और बाकी पशु पक्षियों को खिलाये जाते हैं। कहते हैं इन पशु पक्षियों के रूप में देवी देवताओं के दूत प्रसाद ग्रहण करते हैं।  परंतु इन लड्डुओं को प्रसाद के रूप में घर नहीं ले जा सकते। दरवार से जल या भभूती ले जाने का ही नियम है।
  कहा जाता है की मुस्लिम शासन काल में कुछ बादशाहों ने इस मूर्ति को नष्ट करने की कोशिश की लेकिन हर बार असफलता हाथ लगी। बादशाह जितना इसे जितना खुदवाते गए मूर्ति की जड़ उतनी ही गहरी होती गई। अंत में हारकर उन्हें यह प्रयास छोड़ना पड़ा।

                                                         जय वजरंग वली। 

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