भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिगों में से एक है सोमनाथ मंदिर का शिवलिंग
सोमनाथ का यह मंदिर भारत के पश्चिमी तट पर गुजरात के सौराष्ट्र की बेरावल बंदरगाह में स्थित है। माना जाता है कि इस मंदिर का असितत्व ईसा पूर्व से ही था । इस मंदिर का उल्लेख ऋगवेद में भी मिलता है।
सोमनाथ मंदिर के शिवलिंग की गिनती भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्बप्रथम के रूप में होती है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्मांण खुद चन्द्र देव यानि सोम देव ने करबाया था। इसी कारण इस मंदिर का नाम सोमनाथ पड़ा।
कहते हैं इस स्थान पर भगवान श्री कृष्ण ने देह त्याग किया था इस वजह से इस स्थान का महत्व और भी बढ़ गया ।
कथा के अनुसार राजा दक्ष ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चन्द्र देव से किया था। सत्ताईस कन्याओं का पति बन कर चन्द्र देव बेहद खुश थे। सभी कन्याएं भी इस विवाह से प्रसन्न थी। इन सभी कन्याओं में चन्द्र देव सबसे अधिक रोहिणी नामक कन्या को चाहते थे। जब इस बात की शिकायत सब कन्यांओ ने राजा दक्ष से की तो राजा दक्ष ने चन्द्र देव को बहुत समझाया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। उनके समझाने का प्रभाव यह हुआ कि उनका लगाव रोहिणी के प्रति और अधिक हो गया। यह जानने के बाद राजा दक्ष ने देव चन्द्र को श्राप दे दिया कि जाओ आज से तुम क्षय रोग से पीड़ित हो जाओगे। और तुम्हारा प्रभाव दिन प्रतिदिन कम होता जाएगा । श्रापवश चन्द्र देव क्षय रोग से पीड़ित हो गए। उनके सम्मान और प्रभाव में भी कमी हो गई। इस श्राप से मुक्त होने के लिए वे भगवान ब्रह्मा की शरण में गए ।
इस शाप से मुक्ति का ब्रह्मा देव ने यह उपाय बताया कि सरस्वती के मुहाने पर स्थित अरब सागर में स्नान करके चन्द्र देव को भगवान शिव की उपासना करनी होगी । तभी इस श्राप से मुक्ति मिल सकती है। भगवान ब्रह्मा जी के कहे अनुसार चन्द्र देव ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की । चन्द्र देव की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने चन्द्र देव को दर्शन दिये और वरदान मांगने के लिए कहा। तब चन्द्र देव ने श्राप से मुक्त करने के लिए कहा।
इस श्राप को पूरी से समाप्त करना भगवान शिव के लिए भी सम्भव नहीं था। मध्य का मार्ग निकाला गया, कि एक माह में जो पक्ष होते है । एक शुक्ल पक्ष और कृ्ष्ण पक्ष जिसमें से किसी एक एक पक्ष में उनका यह श्राप नहीं रहेगा परन्तु दुसरे पक्ष में इस श्राप से ग्रस्त रहेगें। शुक्ल पक्ष और कृ्ष्ण पक्ष में वे एक पक्ष में बढते है, और दूसरे में वो घटते जाते है। चन्द्र देव ने भगवान शिव की यह कृ्पा प्राप्त करने के लिए उन्हें धन्यवाद किया और उनकी स्तुति की।
उसी समय से इस स्थान पर भगवान शिव की उपासना करने का प्रचलन प्रचलन प्रारम्भ हुआ तथा भगवान शिव सोमनाथ मंदिर में आकर पूरे विश्व में विख्यात हो गए। देवता भी इस स्थान को नमन करते है ।इस स्थान पर चन्द्र देव भी भगवान शिव के साथ स्थित है।
महोमद गजनवी ने सन् 1026 में इस मंदिर पर आक्रमण कर इस मंदिर की पूरी सम्पति लूट ली और इसे नष्ट कर दिया। इसके बाद गुजरात के राजा भीम तथा मालवा के राजा भोज ने इस मंदिर का पुनः निर्माण करवाया। परन्तु सन् 1300 में दिल्ली के सल्तनत अलाउद्दीन ने अपने सेना द्वारा इस मंदिर को पुनः नष्ट किया तथा इसके बाद भी मंदिर कई बार नष्ट हुआ और कई बार इसका पुनः निर्माण हुआ. ऐसा माना जाता है की आगरा के ताजमहल में रखे देवदार सोमनाथ मंदिर के है। महमूद गजनवी सन् 1026 में मंदिर लूटने के साथ ही इन्हे अपने साथ ले गया था। सोमनाथ मंदिर के मूल स्थल पर मंदिर के ट्रस्ट द्वार नवीनतम मंदिर का निर्माण किया गया था।
राज कुमार पाल द्वारा इसी स्थान पर अंतिम मदिर बनवाया गया था। सौराष्ट्र के मुख्य्मंत्री उच्छ्गंराय नवल शंकर ने इस मंदिर का उत्खनन सन् 1940 में कराया. इसके बाद पुरातत्व विभाग ने इस मंदिर के उत्खनन से प्राप्त ब्रह्मशीला में भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग स्थापित करा। इस समय जो मंदिर खड़ा है उसका निर्माण भारत सरकार के गृह मंत्री सरदार बल्ल्भ भाई पटेल ने करवाया था जो सन् 1995 को भारत सरकार के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने राष्ट्र को समर्पित कर दिया था.
मंदिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे पर एक स्तम्भ स्थापित है जिसके ऊपर एक तीर रख कर संकेत किया गया है की सोमनाथ मंदिर और दक्षिण धुर्व के बीच पृथ्वी का कोई भू-भाग स्थित नहीं है। मदिर के पृष्ठ भाग में स्थित प्राचीन मंदिर के विषय में यह मान्यता है की यह पार्वती जी का मंदिर है. यह तीर्थ स्थान पितृगणों के श्राद्ध, नारयण बली आदि के लिए बहुत प्रसिद्ध है। सोमनाथ मंदिर में खासकर चैत्र, भाद्र, कार्तिक इन तीनो महीनों में बहुत अधिक मात्र में भीड़ लगी रहती है।
जय भोलेनाथ ।
कहते हैं इस स्थान पर भगवान श्री कृष्ण ने देह त्याग किया था इस वजह से इस स्थान का महत्व और भी बढ़ गया ।
सोमनाथ मंदिर की कहानी -
कथा के अनुसार राजा दक्ष ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चन्द्र देव से किया था। सत्ताईस कन्याओं का पति बन कर चन्द्र देव बेहद खुश थे। सभी कन्याएं भी इस विवाह से प्रसन्न थी। इन सभी कन्याओं में चन्द्र देव सबसे अधिक रोहिणी नामक कन्या को चाहते थे। जब इस बात की शिकायत सब कन्यांओ ने राजा दक्ष से की तो राजा दक्ष ने चन्द्र देव को बहुत समझाया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। उनके समझाने का प्रभाव यह हुआ कि उनका लगाव रोहिणी के प्रति और अधिक हो गया। यह जानने के बाद राजा दक्ष ने देव चन्द्र को श्राप दे दिया कि जाओ आज से तुम क्षय रोग से पीड़ित हो जाओगे। और तुम्हारा प्रभाव दिन प्रतिदिन कम होता जाएगा । श्रापवश चन्द्र देव क्षय रोग से पीड़ित हो गए। उनके सम्मान और प्रभाव में भी कमी हो गई। इस श्राप से मुक्त होने के लिए वे भगवान ब्रह्मा की शरण में गए ।
इस शाप से मुक्ति का ब्रह्मा देव ने यह उपाय बताया कि सरस्वती के मुहाने पर स्थित अरब सागर में स्नान करके चन्द्र देव को भगवान शिव की उपासना करनी होगी । तभी इस श्राप से मुक्ति मिल सकती है। भगवान ब्रह्मा जी के कहे अनुसार चन्द्र देव ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की । चन्द्र देव की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने चन्द्र देव को दर्शन दिये और वरदान मांगने के लिए कहा। तब चन्द्र देव ने श्राप से मुक्त करने के लिए कहा।
इस श्राप को पूरी से समाप्त करना भगवान शिव के लिए भी सम्भव नहीं था। मध्य का मार्ग निकाला गया, कि एक माह में जो पक्ष होते है । एक शुक्ल पक्ष और कृ्ष्ण पक्ष जिसमें से किसी एक एक पक्ष में उनका यह श्राप नहीं रहेगा परन्तु दुसरे पक्ष में इस श्राप से ग्रस्त रहेगें। शुक्ल पक्ष और कृ्ष्ण पक्ष में वे एक पक्ष में बढते है, और दूसरे में वो घटते जाते है। चन्द्र देव ने भगवान शिव की यह कृ्पा प्राप्त करने के लिए उन्हें धन्यवाद किया और उनकी स्तुति की।
उसी समय से इस स्थान पर भगवान शिव की उपासना करने का प्रचलन प्रचलन प्रारम्भ हुआ तथा भगवान शिव सोमनाथ मंदिर में आकर पूरे विश्व में विख्यात हो गए। देवता भी इस स्थान को नमन करते है ।इस स्थान पर चन्द्र देव भी भगवान शिव के साथ स्थित है।
इस मंदिर को कई बार किया गया नष्ट —
महोमद गजनवी ने सन् 1026 में इस मंदिर पर आक्रमण कर इस मंदिर की पूरी सम्पति लूट ली और इसे नष्ट कर दिया। इसके बाद गुजरात के राजा भीम तथा मालवा के राजा भोज ने इस मंदिर का पुनः निर्माण करवाया। परन्तु सन् 1300 में दिल्ली के सल्तनत अलाउद्दीन ने अपने सेना द्वारा इस मंदिर को पुनः नष्ट किया तथा इसके बाद भी मंदिर कई बार नष्ट हुआ और कई बार इसका पुनः निर्माण हुआ. ऐसा माना जाता है की आगरा के ताजमहल में रखे देवदार सोमनाथ मंदिर के है। महमूद गजनवी सन् 1026 में मंदिर लूटने के साथ ही इन्हे अपने साथ ले गया था। सोमनाथ मंदिर के मूल स्थल पर मंदिर के ट्रस्ट द्वार नवीनतम मंदिर का निर्माण किया गया था।
राज कुमार पाल द्वारा इसी स्थान पर अंतिम मदिर बनवाया गया था। सौराष्ट्र के मुख्य्मंत्री उच्छ्गंराय नवल शंकर ने इस मंदिर का उत्खनन सन् 1940 में कराया. इसके बाद पुरातत्व विभाग ने इस मंदिर के उत्खनन से प्राप्त ब्रह्मशीला में भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग स्थापित करा। इस समय जो मंदिर खड़ा है उसका निर्माण भारत सरकार के गृह मंत्री सरदार बल्ल्भ भाई पटेल ने करवाया था जो सन् 1995 को भारत सरकार के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने राष्ट्र को समर्पित कर दिया था.
मंदिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे पर एक स्तम्भ स्थापित है जिसके ऊपर एक तीर रख कर संकेत किया गया है की सोमनाथ मंदिर और दक्षिण धुर्व के बीच पृथ्वी का कोई भू-भाग स्थित नहीं है। मदिर के पृष्ठ भाग में स्थित प्राचीन मंदिर के विषय में यह मान्यता है की यह पार्वती जी का मंदिर है. यह तीर्थ स्थान पितृगणों के श्राद्ध, नारयण बली आदि के लिए बहुत प्रसिद्ध है। सोमनाथ मंदिर में खासकर चैत्र, भाद्र, कार्तिक इन तीनो महीनों में बहुत अधिक मात्र में भीड़ लगी रहती है।
जय भोलेनाथ ।
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