बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का इतिहास, history

बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग-

बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग

  भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक पवित्र वैद्यनाथ शिवलिंग झारखंड के देवघर में स्थित है। इस जगह को लोग बाबा बैजनाथ धाम के नाम से भी जानते हैं। कहते हैं भोलेनाथ यहां आने वाले की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। इसलिए इस शिवलिंग को कामना लिंग भी कहते हैं। बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग में कावड़ चढ़ाने का बहुत महत्व है। भक्तजन सुल्तान गंज से गंगाजल लेकर 106 कि.मी. की पैदल यात्रा करके देवधर तक बैद्यनाथ धाम की यात्रा करते है।

बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की कहानी- 

श्री बैद्यनाथ धाम मंदिर

  बाबा बैजनाथ की स्थापना से संबंधित एक बड़ी ही रोचक कथा शिवपुराण में वर्णित है। शिव पुराण के अनुसार यह ज्योतिर्लिंग रावण द्वारा यहां लाया गया था। यह तो सब जानते हैं कि रावण भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। एक बार वह भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर जाकर घोर तपस्या करने लगा। वर्षों की तपस्या के बाद भगवान शिव प्रसन्न होकर रावण के समक्ष प्रकट हुए और रावण से वरदान मांगने के लिए कहा। रावण ने कहा कि आप सशरीर मेरे साथ चलें और कैलाश छोड़कर लंका में निवास करें। भगवान शिव ने कहा कि ऐसा संभव नहीं है, तुम चाहो तो मेरा शिवलिंग ले जा सकते हो। यह शिवलिंग साक्षात मेरा ही स्वरूप होगा। लेकिन इसे मार्ग में कहीं मत रखना क्योंकि इसे जहां रखोगे यह वहीं स्थापित हो जाएगा। 

   रावण को अपने बाहुवल पर बहुत घमंण्ड था। उसने सोचा कि वह शिवलिंग को आसानी से लंका पहुंचा कर स्थापित कर देगा। इसलिए उसने भगवान शिव की यह बात स्हर्ष मान ली। रावण प्रसन्न होकर शिवलिंग को साथ लिये लंका की ओर चल पड़ा। देवताओं को इससे चिंता होने लगी कि शिव की कृपा मिल जाने से रावण और अत्याचारी बन जाएगी। सभी देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और इस समस्या का हल करने की प्रार्थना की। तब भगवान विष्णु और देवताओं ने मिलकर एक चाल चली जिससे रावण शिवलिंग को साथ नहीं ले जा सके। देवताओं के अनुरोध पर गंगा रावण की पेट में समा गयी। इससे रावण को तेज लघुशंका लग गयी।

काबड़ यात्रा

  शिवलिंग को हाथ में लेकर लघुशंका करना उसे उचित नहीं लगा। इसने अपने चारों ओर देखा तो एक वालक नज़र आया। रावण ने उस वालक से कहा कि शिवलिंग को पकड़ कर रखे वह लघुशंका से निवृत होकर आता है। रावण ने वालक को यह निर्देश दिया कि वह शिवलिंग को भूमि पर न रखे। रावण जब लघुशंका करने लगा तब उसकी लघुशंका से एक तालाब बन गया लेकिन रावण की लघुशंका समाप्त नहीं हुई। 

  वालक के रूप में मौजूद भगवान विष्णु ने रावण से कहा कि बहुत देर हो गयी है मैं अब शिवलिंग उठाए खड़ा नहीं रह सकता। इतना कहकर वालक ने शिवलिंग को भूमि पर रखा और अंतर्ध्यान हो गया। जमीन से स्पर्श हो जाने से शिवलिंग बहीं स्थापित हो गया। रावण जब लघुशंका समाप्त होने पर बापिस आया तो शिवलिंग को जमीन पर रखा देखकर बहुत क्रोधित हुआ। लेकिन वह कुछ नहीं कर सकता था। रावण ने शिवलिंग को भूमि से उठाने का बहुत प्रयास किया लेकिन रावण के लाख प्रयास के बावजूद शिवलिंग वहां से हिला तक नहीं। 

                  श्री बैद्यनाथ धाम

  इससे क्रोधित होकर रावण ने शिवलिंग के ऊपर अपने पैर से प्रहार किया जिससे शिवलिंग भूमि में और समा गया। अंत में रावण को शिवलिंग को उसी स्थान पर छोड़कर लंका जाना पड़ा। बाद में कई बर्षों के बाद यह शिवलिंग बैजू नाम के एक चरवाहे को मिला। इसी चरवाहे के नाम से रावण द्वारा स्थापित शिव का यह ज्योर्तिलिंग बैजनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

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