मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कहानी


मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग -


मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग 1

  यह ज्योतिर्लिंग आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल नाम के पर्वत पर स्थित है। इस मंदिर का महत्व भगवान शिव के कैलाश पर्वत के समान कहा गया है। इस पर्वत को दक्षिण भारत का कैलाश भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि यहां आकर शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने वाले भक्तों की सभी सात्विक मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। भगवान शिव की भक्ति मनुष्य को मोक्ष के मार्ग पर ले जाने वाली है।
   धार्मिक शास्त्र 12 प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंगों में शामिल इस ज्योतिर्लिंग के धार्मिक और पौराणिक महत्व की व्याख्या करते हैं। कहते हैं कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से ही व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्ति मिलती है

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की स्थापना की कहानी-

           मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग

  पुराणों में विशेषकर महाभारत, शिवपुराण और पद्म पुराण में इस ज्योतिर्लिंग की महिमा का वर्णन मिलता है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शंकर जी के दोनों पुत्रों श्री गणेश और श्री स्वामी कार्तिकेय में इस बात को लेकर विवाद हो गया कि पहले विवाह किसका होगा। जब दोनों से इस विवाद का हल नहीं निकला तो दोनों भगवान शिव और माता पार्वती अपना अपना मत लेकर पहुंचे। प्रत्येक का आग्रह था कि मेरा विवाह पहले किया जाए। उन्हें लड़ते-झगड़ते देखकर भगवान शंकर और मां पार्वती ने उन्हैं समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली। जब दोनों नहीं माने तो भगवान शिव और माता पार्वती ने विवाद सुलझाने का एक उपाय निकाला और उनसे कहा कि तुम दोनों में से जो पहले पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाकर यहां वापस लौट आएगा उसी का विवाह पहले किया जाएगा।

  माता-पिता से विवाद का हल पाकर दोनों को बहुत प्रसन्नता हुई। श्री स्वामी कार्तिकेय का वाहन मयूर है इसलिए वह तो तुरंत कार्य पूरा करने के लिए दौड़ पड़े लेकिन गणेश जी के लिए तो यह कार्य बड़ा ही कठिन था क्योंकि एक तो उनकी काया स्थूल थी, दूसरे उनका वाहन भी मूषक था जो कि बहुत धीमी गति से चलने वाला प्राणी है। भला वह दौड़ में स्वामी कार्तिकेय को किस प्रकार हरा पाते? लेकिन उनकी काया जितनी स्थूल थी, बुद्धि उससे कहीं अधिक तेज थी। उन्होंने प्रयोगिता जीतने का एक सरल उपाय खोज निकाला।

  उन्हैं यह बात भली भांति पता थी कि शास्त्रों में माता पिता को पृथ्वी के समान बताया गया है। शास्त्रों का अनुसरण करते हुए उन्होंने सामने बैठे माता-पिता का पूजन करने के पश्चात उनकी प्रदीक्षणा करनी प्रारंभ कर दी। इस प्रकार उन्होंने पृथ्वी-प्रदक्षिणा का कार्य पूरा कर लिया। उनका यह कार्य शास्त्रों के अनुसार उचित था इसलिए शर्त के अनुसार माता पिता ने गणेश जी का विवाह रिद्धि और सिद्धि नाम की दो कन्याओं से कर दिया।

            मल्लिकार्जुन मंदिर

  पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाकर स्वामी कार्तिकेय जब लौटे तो उन्होंने देखा कि गणेश जी का विवाह हो चुका था और वह शर्त हार चुके हैं। गणेश की बुद्धिमानी और चतुराई देखकर स्वामी कार्तिकेय नाराज हो गए और श्री शैल पर्वत पर चले गए। पुत्र मोह के कारण माता पार्वती वहां उन्हें मनाने पहुंचीं। पीछे से शंकर भगवान भी वहां पहुंचकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए और तब से मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुए। यहां पर मल्लिका शब्द माता पार्वती और अर्जुन भगवान शिव का वाचक है।

दूसरी कथा -


  श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की स्थापना के बारे में एक दूसरी कथा भी प्रचलित है। इस कथा के अनुसार इस शैल पर्वत के नजदीक किसी समय राजा चंद्रगुप्त की राजधानी हुआ करती थी। उनकी राजकन्या किसी विपत्ति में उलझ गई थी। विपत्ति विशेष के निवारण हेतू वह कन्या राजा के महल को छोड़ पर्वतराज की शरण में पहुंच गई और वहां पर आश्रम बनाकर रहने लगी। वह ग्वालों के साथ कंद-मूल खाकर और दूध पीकर जीवन यापन करती थी। उस कन्या के पास एक बड़ी ही सुंदर श्यामा गाय थी। लेकिन कोई व्यक्ति छिपकर रोज रात को उसका दूध दुह कर ले जाता था। एक दिन संयोगवश उस राज कन्या ने चोर को दूध दोहते देख लिया और क्रुद्ध होकर उस चोर की ओर दौड़ी, किंतु गाय के पास पहुंचकर उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। उसे वहां शिवलिंग के अतिरिक्त और कुछ दिखाई नहीं दिया। राजकुमारी ने कुछ समय पश्चात उस शिवलिंग पर एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाया। यही शिवलिंग मल्लिकार्जुन के नाम से प्रसिद्ध है।

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