भीमा शंकर जयोतिर्लिंग का इतिहास


भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग-


                  श्र भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग

  बारह ज्योतिर्लिंगों में भीमाशंकर का स्थान छठा है। यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पूणे के सहाद्रि नामक पर्वत पर स्थित है। कहते हैं जो भी व्यक्ति प्रतिदिन प्रात: काल इस ज्योतिर्लिंग के श्लोकों का पाठ करता है वह सात जन्मों तक के पापों से मुक्त हो जाता है।

   भीमशंकर मंदिर बहुत ही प्राचीन है। भीमशंकर मंदिर से पहले ही शिखर पर देवी पार्वती का एक मंदिर है। इसे कमला जी मंदिर कहा जाता है। मान्यता है कि इसी स्थान पर देवी ने राक्षस त्रिपुरासुर से युद्ध में भगवान शिव की सहायता की थी। युद्ध के बाद भगवान ब्रह्मा ने देवी पार्वती की कमलों से पूजा की थी।

  भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की स्थापना-


                  श्री भीमाशंकर मंदिर

   कहा जाता है कि कुंभकर्ण का भीम नाम का एक महाबलशाली और पराक्रमी राक्षस पुत्र था। कुंभकर्ण को कर्कटी नाम की एक महिला पर्वत पर मिली थी। उसे देखकर कुंभकर्ण उस पर मोहित हो गया और उससे विवाह कर लिया। विवाह के बाद कुंभकर्ण लंका लौट आया, लेकिन कर्कटी पर्वत पर ही रही। कुछ समय बाद कर्कटी ने भीम नाम के पुत्र को जन्म दिया। जब श्रीराम ने कुंभकर्ण का वध कर दिया तो कर्कटी ने अपने पुत्र को देवताओं के छल से दूर रखने का फैसला किया।

  राक्षस भीम बड़ा ही दुराचारी और अत्याचारी था। बड़ा होने पर जब उसे अपनी माता से अपने पिता की मृत्यु का कारण पता चला तो उसने देवताओं को सबक सिखाने का निश्चय कर लिया। भीम ने अपनी शक्ति और बढा़ने के लिए घोर तपस्या की और ब्रह्मा जी से परम् शक्तिशाली होने का वरदान प्राप्त कर लिया। इसके बाद अपनी ताकत के नशे में चूर उसने देवताओं से युद्ध करना शुरू कर दिया। इस दौरान उसने कई देवताओं को हरा दिया और देव लोक से देवताओं को भागने पर विवश कर दिया। राक्षस के अत्याचारों से हर जगह त्राहि -त्राहि मच गई। सभी देवता भगवान शिव के पास गए और राक्षस के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने उन्हैं आश्वासन दिया और कहा कि जल्दी ही राक्षस का अंत कर दिया जाएगा। उधर देवलोक को जीतने के बाद राक्षस ने पूरी पृथ्वी को जीतने का निर्णय किया। इसी दौरान उसने कामरूप के सुदक्षिण नाम के राजा जो कि भगवान शिव का परम भक्त था पर आक्रमण कर दिया और उसे हराकर करागार में बंद कर दिया। राजा भगवान शिव का भक्त था और रोज पूजा पाठ करता था। कारागार में भी राजा भगवान शिव का शिवलिंग बनाकर नित्य पूजा करता और शिव की भक्ति में लीन रहता था। राजा के पूजा पाठ करने का नतीजा यह हुआ कि अन्य कैदी जो राजा के साथ बंद थे वो भी शिव के भक्त वन गए और पूजा पाठ करने लगे।

                 श्री भीमाशंकर मंदिर 1

   यह बात जब राक्षस भीम को पता चली तो वह बहुत क्रोधित हुआ और राजा को भगवान शिव की पूजा छोड़ उसकी पूजा करने को कहा। परंतु जब भीम के कहने पर भी राजा ने भगवान शिव का पूजा पाठ करना बंद नहीं किया तो उसने राजा को मारने का निर्णय कर लिया। भीम ने कारागार में जाकर राजा को मारने के लिए जैसे ही तलवार चलाई तो शिवलिंग में से स्वयं भगवान शिव प्रकट हो गए। भगवान शिव और भीम के बीच घोर युद्ध हुआ, जिसमें भीम की मारा गया। फिर राजा और देवताओं ने भगवान शिव से हमेशा के लिए उसी स्थान पर रहने की प्रार्थना की। भोलेनाथ ने उनके आग्रह को स्वीकार किया और शिव लिंग के रूप में उसी स्थान पर स्थापित हो गए। इस स्थान पर भीम को मारने की वजह से इस ज्योतिर्लिंग का नाम भीमाशंकर पड़ गया।

कई कुंड हैं यहां-


  यहां के मुख्य मंदिर के पास मोक्ष कुंड, सर्वतीर्थ कुंड, ज्ञान कुंड, और कुषारण्य कुंड भी स्थित है। इनमें से मोक्ष नामक कुंड को महर्षि कौशिक से जुड़ा हुआ माना जाता है और कुशारण्य कुंड से भीम नदी का उद्गम माना जाता है।

















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